Sunday, June 28, 2009

'I Don't Love You'
Pablo Neruda




मैं
लौट आऊंगा

-पाब्लो नेरुदा
किसी और समय, पुरूष या स्त्री, या राहगीर बनके
फ़िर लौट आऊंगा मैं,
जब मैं जीवित रहा
यहाँ गौर से देखना मुझे, यहाँ ही देखना
बिखरे हुए पत्थरों और फैले हुए समुन्दर के बीच
झाग में से तेजी से गुजरती रौशनी में
देखना, यहीं प्यार से देखना मुझे
क्योंकि यहीं चुपचाप लौट आऊंगा मैं
निःशब्द, बेजुबान पर पाक पवित्र
यही भंवर में घुमते पानी
के टूट सकने वाले दिल में होऊंगा मैं

यहीं मैं तलाशूंगा तुम्हें और फ़िर गुम हो जाऊंगा
यहीं शायद मैं एक पत्थर होऊं
या रहस्यमयी खामोशी में छुपा होऊंगा मैं
(अनुवाद: देवेन्द्र पाल)


(नेरुदा के बाद जीवन का समूचा संघर्ष और प्रतिबद्धता इन कविताओं के मध्यम से जानी जा सकती हैं क्योंकि मेरा मानना है की प्रेम करने की शिद्दत जहाँ है वहाँ से ही बड़े विचार और क्रांतियों का जनम होता है.-मधु शर्मा )

हर दिन तुम खेलती हो

हर दिन तुम खेलती हो ,सृष्टि के उजाले से
फूलों में पानी में पहुँच जाती हो
तुम ओ विलक्षण अतिथि !

इस उजले मस्तक से, कहीं अधिक हो तुम
जिसे अपने हाथों के बीच, फलों के गुच्छ-सा हर दिन
थामे रहता हूँ मजबूती से

विदेह-अनाम-सी कोई नहीं तुम
तब से मैं करता हूँ प्यार तुम्हें
फैला लेने दो मुझको पीले गजरों के बीच तुम्हें

दक्षिण के तारों के बीच
लिख देता कौन तुम्हारा नाम धुंएँ के वर्णों में?
जीवन में आने से पहले कैसी थी तुम?
करने दो याद मुझे

शोर मचाती है यकदम यह तेज़ हवा
मेरी बंद खिड़की पर कैसी जोरों की खड़खड़ है
है जाल ठसाठस आसमान का मायावी मछली से

जाने देती हवाएं उन सभी को देर-सबेर
हटा देती बरसात उनके वस्त्रों को भी
अवज्ञा से निकल भागते पंछी
हवा, ओ हवा
दावा कर सकता हूँ मैं केवल मनुष्य की ताकत के सम्मुख

घुमा देते झंझावत तीव्र वेगों से उदास पत्तों को
और सारी नावें खोल देते पिछली रात जो बंधी थी आसमान से

तुम हो यहाँ, ओह! भाग नहीं गयीं तुम
अन्तिम रुलाई तक देना होगा तुम्हें जवाब मुझे
(अनुवाद: मधु शर्मा )



हम देखेंगे
फैज़ अहमद फैज़




स्पर्श
ओक्टावियो पाज़
मेरे हाथ
खोलते हैं
कई आवरण तुम्हारे अस्तित्व के
ढंकने को तुम्हें अगली नग्नता
अनावरण करने को देहों का, तुम्हारी देह की
मेरे हाथ
आविष्कार करते हैं दूसरी देह का,
तुम्हारी देह के लिए



बर्तोल्त ब्रेख्त की एक महान प्रेम कविता

कमजोरियां तुम्हारी
कोई नही थी
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार


शायरी मैंने ईज़ाद की

अफ़जाल अहमद


कागज़ मराकशियों ने ईज़ाद किया
हुरूफ़ फोनोशियों ने
शायरी मैंने ईज़ाद की

कब्र खोदने वाले ने तंदूर ईज़ाद किया
तंदूर पर कब्ज़ा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वालों ने कतार ईज़ाद की
और मिल कर गाना सीखा

रोटी की कतार में जब चींटियाँ भी आकर खड़ी हो गयीं
तो फाका ईजाद हुआ

शहतूत बेचने वालों ने रेशम का कीड़ा ईज़ाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिबास बनाये
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईज़ाद की
जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया

फासले ने घोड़े के चार पाँव ईज़ाद किए
तेज रफ्तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईज़ाद हुयी
तो मुझे तेज रफ़्तार रथ के आगे लिटा दिया
गया

मगर उस वक्त तक शायरी ईज़ाद हो चुकी थी
मुहब्बत ने दिल ईज़ाद किया
दिल ने खेमा और कश्तियाँ बनायीं
और दूर-दराज़ मकामात पैदा किए

ख्वाजासरा ने मछली पकड़ने का काँटा ईज़ाद किया
और सोये हुए दिल में चुभो कर भाग गया
दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईज़ाद की
और
ज़बर ने आखरी बोली ईज़ाद की

मैंने सारी शायरी बेच कर आग खरीदी
और ज़बर का हाथ जला दिया



पंजाबी
एक नज्म

हमारे हाथों में पंछी घोसला नहीं बनाते
लड़कियों के पास फासले कम और सफर ज्यादा होते हैं
मेरे पास उधार ज्यादा है, और दूकान कम
कल जब हमारे गुनाहों पर रसूल उतरेगा
कुरान खोटा हो जाएगा, बन्दे खरे हो जायेंगे
और फ़िर हम तौबा के टांकों से -
खुदा का लिबास सियेंगे
और अपने बदन के फासले से निकल जायेंगे .....
तू दुःख को पैबंद लगाना ,
में तुझे हिफ्ज़ कर लूंगी..........
तूने समंदर को गिरवी रख दिया
अब किनारों को कन्धा कौन देगा!
इंसान को बस्तियों से निकालो
जंगलों में रस्साकशी होने लगी
काली घटा हटी , मैं हटी .........
आँखें दो जोड़ी बहनें ---
एक मेरे घर ब्याही गयी, दूसरी तेरे घर
हाथ दो सौतेले भाई -
जिन्होंने आग में पड़ाव डाला है
और घोंसलों से चुराया सोना--
बच्चे के पहले दिन पर मल दिया गया
मुझे समझो तो झूठ हूँ--
सह जाओ तो राज़ हूँ....

सारा शगुफ्ता

रूसी

इन राहों पर
शीत में इन राहों पर से
रुपहले सुरीले युवराज के साथ
चलती रही हूँ मैं
पूरी की पूरी- बर्फ
पूरी की पूरी - मृत्यु
स्वप्न -पूरी की पूरी


गुलाबी शीतल धुएँ से
ढका पड़ा है आकाश
कभी मेरा एक नाम था
एक शरीर था, पर अब
धुंआ नही है क्या सब का सब?

एक आवाज़ थी
गरम और सघन .....
कहते हैं--
पहाडी झुंड से निकला
नीली आंखोंवाला यह बच्चा
दूसरों का नहीं, मेरा है

इस राह पर
किसी को भी कुछ दीखता नहीं
पर मैं बहुत बहुत पहले
देख चुकी हूँ ताबूत में
अपना विराट सपना
पूरे का पूरा


marina swetayeva
(1919)

रूसी

हैमलेट


शोरगुल डूब गया और मैं आ गया मंच पर
द्वार से उगंथ कर दूरस्थ प्रतिध्वनियों में
अनुमान कर सकने की चेष्टा में हूँ मैं
कि क्या घटने वाला है आगे मेरे जीवन में।

रात की तमिस्रा हज़ारों ’ऑपेरा’-- आईनों से हो कर
जैसे केन्द्रित हो मुझ पर।
ओ परम पिता! यदि सम्भव हो तो
टल जाने दो इस पात्र को मेरे मुख तक आए बगैर।

मुझे प्यार है तुम्हारे सुदृढ़ उद्देश्य से।
मैं सहमत हूँ अपनी भूमिका करने को
किन्तु आज अभिनय हो रहा है एक अन्य नाटक का
और इसके लिए एक बार मुआफ़ कर दो मुझे।

लेकिन पूर्व निश्चित है अभिनय की योजना
और मुहरबंद है उसका अन्त, बिना किसी हेरफेर की सम्भावना के।
ज़िन्दगी आसान नहीं है किसी मैदान को चलकर पार करने की तरह।

बोरिस पेस्तार्नाक
रूसी

रात सड़क लैंप....

रात
सड़क
लैम्प
कैमिस्ट की दुकान

धुंधली और अर्थहीन रोशनी

और अगर जिओ तुम
एक चौथाई शताब्दी
तब भी सभी कुछ
होगा ऎसा ही
इससे निकलने का
रास्ता नहीं


मर जाओगे
नए सिरे से फिर से शुरू करोगे
और पुराने जैसा
सब कुछ दोहराओगे


रात
सड़क
लैम्प
कैमिस्ट की दुकान

एलेक्जेंडर ब्लोक

अंग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक


अंग्रेजी
अकेलेपन से बढ़कर

अकेलेपन से बढ़कर
आनन्द नहीं , आराम नहीं ।
स्वर्ग है वह एकान्त,
जहाँ शोर नहीं, धूमधाम नहीं ।

देश और काल के प्रसार में,
शून्यता, अशब्दता अपार में
चाँद जब घूमता है, कौन सुख पाता है ?
भेद यह मेरी समझ में तब आता है,
होता हूँ जब मैं अपने भीतर के प्रांत में,
भीड़ से दूर किसी निभृत, एकान्त में ।

और तभी समझ यह पाता हूँ
पेड़ झूमता है किस मोद में
खड़ा हुआ एकाकी पर्वत की गोद में ।

बहता पवन मन्द-मन्द है ।
पत्तों के हिलने में छन्द है ।
कितना आनन्द है !

अंग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : रामधारी सिंह 'दिनकर'